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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर -

जलवायु सम्बन्धी आधार

जलवायु एक प्रमुख प्राकृतिक तत्व है जिसका प्रभाव प्राकृतिक पर्यावरण पर अत्यधिक होता है। जलवायु का प्रभाव न केवल अन्य प्राकृतिक तत्वों जैसे प्राकृतिक वनस्पति मृदा आदि पर पड़ता है, वरन् यह मानवीय अधिवास पर भी प्रभाव डालती है।

जलवायु एक लम्बी समयावधि में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का योग होती है अर्थात् यह लम्बे समय की मौसमी दशाओं का औसत होता है। जलवायु के अन्तर्गत तापमान, वायुभार, हवाएं, वर्षा, आर्द्रता आदि को सम्मिलित किया जाता है। भारत के एक विशाल देश होने के कारण यहां जलवायु की विविधता देखी जाती है। भारत की जलवायु के सम्बन्ध में ब्लैनफोर्ड का यह कथन उल्लेखनीय है, 'हम भारत की जलवायुओं के विषय में तो कह सकते हैं, लेकिन जलवायु के विषय में नहीं, क्योंकि विश्व में भारत से अधिक जलवायवीय विषमताएँ नहीं मिलती हैं। किन्तु इन विविधताओं में भी एकता मिलती है और यहां की जलवायु को 'मानसूनी' अथवा 'उष्ण मानसूनी' (Tropical Mansoon Climate) कहा जाता है।

जलवायु के विभिन्न तत्व क्षेत्रीयकरण का आधार बनते हैं इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

अक्षांशीय स्थिति

भारत की अक्षांशीय स्थिति 8°4' उत्तरी से 37°6' उत्तरी अक्षांश के मध्य है तथा कर्क रेखा इसके मध्य से गुजरती है। अक्षांशीय स्थिति के कारण दक्षिणी भारत उष्ण कटिबंध में है। किन्तु सामान्य रूप से यहां की जलवायु उपोष्ण है। इतने बड़े अक्षांशीय विस्तार के कारण विभिन्न स्थानों की जलवायु में विभिन्नता मिलती है।

समुद्र तल से ऊंचाई - इसका तापमान से विपरीत सम्बन्ध है। सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1° से तापमान कम होता जाता है। इसी कारण हिमालय की उच्च ढालों पर हमेशा बर्फ जमी रहती है। एक ही अक्षांश पर स्थित होते हुए भी ऊंचाई की भिन्नता का कारण ग्रीष्मकालीन औसत तापमान मसूरी में 24° सें०, देहरादून में 32° सें० तथा अंबाला में 40° सें० रहता है।

समुद्र से दूरी - समुद्र का नम व समप्रभाव पड़ता है। इसलिए समुद्र तट पर स्थित नगरों में तापांतर अति न्यून रहता है तथा जलवायु नम रहती है। जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे विषमता अर्थात् तापांतर एवं शुष्कता बढ़ती जाती है। पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेंटीमीटर से अधिक रहता है, जबकि जैसलमेर में यह औसत घटते घटते 5 सेंटीमीटर रह जाता है।

भूमध्य रेखा से दूरी - यह तापमान को प्रभावित करने वाला आधारभूत कारक है। बढ़ते हुए अक्षांश के साथ तापमान में कमी आती जाती है, क्योंकि सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है। इससे सौर्यताप की मात्रा प्रभावित होती है। इसी कारण हिमालय की दक्षिणी ढालों पर हिमरेखा की ऊंचाई अधिक है किन्तु तिब्बत की ओर अर्थात् उत्तरी ढालों पर इसकी ऊंचाई कम है। कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती है। अतः उत्तरी भारत शीतोष्ण प्रदेश में तथा दक्षिणी भारत उष्ण प्रदेश में सम्मिलित किया जाता है।

स्थलाकृति - धरातल अथवा उच्चावच विशेषकर पर्वतों का जलवायु पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। स्थलाकृति वहां के तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवनों की दिशा तथा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करती है। भारत के उत्तर में स्थित हिमालय की पर्वत श्रेणियां भारतीय जलवायु को नियंत्रित करती हैं। एक ओर ये दक्षिणी-पूर्वी मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा में सहायक होती हैं तो दूसरी ओर शीत ऋतु में साइबेरिया की ओर से आने वाली शीत हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकती हैं। मेघालय पठार की कीपनुमा आकृति मानसूनी हवाओं द्वारा सर्वाधिक वर्षा में सहायक होती है। पश्चिमी घाट के कारण भारत का पश्चिमी तट पर्याप्त वर्षा प्राप्त करता है, दूसरी ओर इसका पूर्वी भाग वृष्टि छाया प्रदेश में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है। अरावली पर्वत मानसूनी हवाओं की दिशा के समानांतर होने के कारण वर्षा में सहायक नहीं है। इसी कारण राजस्थान का विस्तृत भाग कम वर्षा प्राप्त करता है तथा मरुस्थली है।

पवनों की दिशा - पवनें अपनी उत्पत्ति के स्थान एवं मार्ग के गुण लाती हैं। ग्रीष्मकालीन मानसून हिन्द महासागर से चलने के कारण उष्ण व आर्द्र होते हैं, अतः वर्षा करते हैं। शरदकालीन मानसून स्थलों व शीत क्षेत्रों से चलते हैं, अतः सामान्यतः शीत व शुष्कता लाते हैं।

ऊपरी वायु संचरण - नवीनतम शोध के अनुसार उच्च स्तरीय वायु संचरण का मानसून से गहरा सम्बन्ध है। भारत की जलवायु मानसूनी होने से काफी हद तक क्षोभमंडल की गतिविधियों से प्रभावित होती है। मानसून की कालिक व उच्चस्तरीय वायु संचरण की दशाओं पर निर्भर करती है। ऊपरी वायु तंत्र में बहने वाली जेट स्ट्रीम का प्रभाव निम्न प्रकार से भारतीय जलवायु पर पड़ता है जो अंततः प्रादेशीकरण को निर्धारित करता है।

(i) पश्चिमी जेट स्ट्रीम - शीत ऋतु में पश्चिमी जेट स्ट्रीम समुद्र तल से लगभग 8 किलोमीटर की ऊंचाई पर तीव्र गति से समशीतोष्ण कटिबंध के ऊपर चलती है। हिमालय के कारण यह दो भागों में विभक्त हो जाती है। मौसम वैज्ञानिक भारत की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(ii) पूर्वी जेट स्ट्रीम - ग्रीष्म काल में पूर्वी जेट स्ट्रीम चलती है जो तिब्बत के पठार के गर्म होने से उत्पन्न होती है। यह दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के अचानक आने में सहायक होती है। पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात शीतकाल में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है। ये प्रायः भारत के उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। शीतकाल में उत्तरी भारत में होने वाली वर्षा इन्हीं के कारण होती है।

अल-नीनो प्रभाव - भारत की जलवायु पर अल-नीनो का भी प्रभाव होता है। अल-नीनो एक संकरी गर्म समुद्री धारा है जो कभी-कभी दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट से कुछ दूरी पर दिसम्बर में प्रभावित होती है। इसके फलस्वरूप उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय जल के गर्म होने से भूमंडलीय दाब एवं पवनों से हिन्द महासागर में मानसूनी हवाएं भी प्रभावित होती हैं, जिनका प्रभाव भारत की जलवायु पर होता है।

'मानसून' शब्द अरबी भाषा के मौसिम (Mausim) शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौसम या ऋतु। मानसूनी पवनें वस्तुतः मौसमी हवाएं ही हैं। ये वर्ष के छह माह स्थल की ओर से तथा छह माह जल की ओर से चलती हैं। भारत वर्ष भर मानसूनी हवाओं के प्रभाव में रहता है। अतः यहां की जलवायु इन हवाओं के द्वारा निर्धारित होती है। भारतीय मानसून का क्रमशः उत्तर की ओर अग्रसर होना एक विशिष्ट पहलू है जो यहां के वर्षा के वितरण को भी निर्धारित करता है।

इन सभी कारणों का प्रभाव जलवायु के तीन मुख्य सूचकांकों तापमान, वायुदाब एवं पवन व वर्षा के वितरण पर पड़ता है जिनके आधार पर भारत में एक वर्ष में चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है-

(1) शीत ऋतु (मध्य दिसम्बर से मध्य मार्च)
(2) ग्रीष्म ऋतु (मध्य मार्च से मई)
(3) वर्षा ऋतु (जून से सितम्बर)
(4) शरद ऋतु (अक्टूबर से मध्य दिसम्बर)

तापमान - यह एक भौतिक मात्रा है जिससे गर्म व ठंडे का पता चलता है। यह सभी पदार्थों में उपस्थित तापीय ऊर्जा की अभिव्यक्ति है। शीत ऋतु में भारत में तापमान उत्तरी भारत से दक्षिण की ओर बढ़ता जाता है। उत्तरी भारत में औसत तापमान 8 डिग्री सेंटीग्रेड से 21 डिग्री सेंटीग्रेड तथा दक्षिणी भारत में औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। मार्च के पश्चात् से ग्रीष्म ऋतु आरंभ हो जाती है तथा अप्रैल में प्रायद्वीपीय क्षेत्र में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। सम्पूर्ण उत्तरी-पश्चिमी भारत में 45 डिग्री से 47 डिग्री सेल्सियस दिन के समय का तापमान रहता है। समुद्र तटीय प्रदेशों एवं पर्वतीय प्रदेशों में तपमान कम रहता है। वर्षा ऋतु के आरंभ के साथ जुलाई में तापमान गिरने लगता है। अक्टूबर से शरद ऋतु के आरंभ के साथ ही सूर्य धीरे-धीरे कम होता जाता है। इस ऋतु में अधिकतम तापमान का औसत 30 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस के मध्य रहता है जो कि दिसम्बर तक धीरे-धीरे घटकर तटीय क्षेत्रों एवं दक्षिणी भारत में औसत रूप से 25 डिग्री सेल्सियस तथा उत्तरी भारत में 5 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। उच्च पर्वतीय क्षेत्र में तापमान हिमांक से नीचे रहता है।

वायुदाब एवं पवनें - वायुमण्डलीय दाब एवं पवनें पृथ्वी के मौसम व जलवायु के निर्धारण के महत्वपूर्ण कारक हैं। ये दोनों कारक एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। पवनों की उपस्थिति वायुदाब की क्षैतिज व लम्बवत् विभिन्नता के कारण मिलती है। हवाएं सामान्यतया उच्च दाब के क्षेत्रों से निम्न दाब के क्षेत्रों की ओर वातावरण में दाब क्षेत्रों की ओर चलती हैं। वातावरण में दाब एक पृथ्वी के दिये हुए क्षेत्र के ऊपर उपस्थित वायु के वजन के बराबर होता है। वायुदाब को सामान्यतः मिलीबार में मापा जाता है।

भारत में शीतकाल में तापमान कम होने के कारण स्थानीय क्षेत्र में उच्च दाब विकसित हो जाता है जो सागर की ओर घटता जाता है। अतः भारत में इस ऋतु में पवनें स्थल से जल की ओर चलती हैं। इन्हें उत्तरी-पूर्वी मानसून के नाम से जाना जाता है। ग्रीष्म ऋतु में उच्च तापमान के कारण उत्तरी भारत में निम्न वायुदाब विकसित हो जाता है। यह न्यून वायुदाब चारों ओर से पवनों को आकर्षित करता है। अतः इस ऋतु में धूल भरी गर्म और शुष्क हवाएं चलती हैं जिन्हें लू कहते हैं। राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब में इन धूल भरी आंधियों का सर्वाधिक प्रभाव रहता है।

मई के अंत तक सूर्य, कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकने लगता है। कम वायुदाब का केन्द्र और भी सघन हो जाता है। अरब सागर के उत्तरी भाग में स्थित एक लघु निम्न वायुदाब का केन्द्र समाप्त हो जाता है। इस समय दक्षिणी गोलार्ध की दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें भी विषुवत रेखा को पार कर भारत की ओर चल पड़ती हैं। विषुवत रेखा के पार करने पर ये पवनें फैरल के नियमानुसार दिशा परिवर्तन करके दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के नाम से भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचती हैं एवं वर्षा करती हैं।

ग्रीष्मकालीन मानसून की उत्पत्ति सम्बन्धी आधुनिक विचार के अनुसार यह उत्पत्ति क्षोभमण्डल में पूर्वी जेट स्ट्रीम के चलने से होती है। जून के आरंभ में मानसून प्रस्फोट अपनी वायुमण्डलीय दशाओं पर अधारित होता है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून द्वारा भारत में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा होती है।

शरद ऋतु में सूर्य के दक्षिणायन होने से उत्तर -पश्चिमी भारत में बना निम्न वायुदाब का केन्द्र समाप्त होने लगता है। अक्टूबर में यह निम्न दाब क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ता जाता है। अतः मानसून लौटना प्रारंभ होता है।

वर्षा - वायु में मिला जलवाष्प शीतल पदार्थों के संपर्क में आने से संघनन के कारण ओसांक तक पहुंचता है। जब वायु का ताप ओसांक के नीचे गिर जाता है तब जलवाष्प पानी की बूंदों अथवा ओलों के रूप में धरातल पर गिरने लगता है। इसी को वर्षा कहते हैं। किसी भी स्थान पर किसी निश्चित समय में बरसे हुए जल कणों तथा हिम कणों से प्राप्त जल की मात्रा को वहां की वर्षा की माप कहते हैं।

भारत में सामान्यतया शीत ऋतु शुष्क होती है और इस ऋतु में बहुत कम वर्षा होती है। मध्य मार्च से मई तक ग्रीष्म ऋतु भी शुष्क होती है तथा सापेक्षिक आर्द्रता 30 प्रतिशत से भी कम होती है किन्तु इस ऋतु में कहीं-कहीं अल्प वर्षा जैसे- असम, मालाबार तट पर, उड़ीसा, पंजाब, बिहार व उत्तर प्रदेश में होती है। भारत में वर्षा ऋतु का समय जून से सितम्बर तक रहता है। इस ऋतु में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून सक्रिय रहता है और संपूर्ण भारत में वर्षा होती है। अक्टूबर के प्रारंभ में उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा प्रायः समाप्त हो जाती है, किन्तु उत्तरी-पूर्वी भारत में वर्षा होती है। यहां 15 अक्टूबर के बाद वर्षा समाप्त हो जाती है किन्तु इस समय कोरोमण्डल तट पर वर्षा होती है। भारत में वर्षा केवल वर्षा काल तक ही सीमित नहीं है अपितु विभिन्न समय पर भी वर्षा होती रहती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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